'काम' शब्द बड़ा अनोखा है और इस शब्द को लेकर अनेक 'मत' और 'अर्थ' हमारे सामने आते हैं। परम्परा तो काम की निन्दा की गयी है पर यदि हम गहराई से दृष्टि डालें तो देखते हैं कि रामचरितमानस तथा हमारे अन्य धर्म……続きを見る
प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपने आपमें ही संघर्षरत है एक ओर यह दशेन्द्रियों में भोगासक्त होकर निरंतर विषयों का सुखानुभव कर रहा है। यही भोगासक्ति मूल रूप से परोत्पीड़न वृत्ति की जन्मदात्री है। दूसरी ओर जीव……続きを見る
मेरा मन भौंरा है, आपके चरण-कमल के पराग के रस का पान करता रहे। इसका अभिप्राय यह है कि मन में अगर तृप्ति और रस का अनुभव होता रहे तो संसार के रस में क्यों पड़ना? संसार मनुष्य को विषयों में ले जाता है और……続きを見る
आइये! क्रोध की वृत्ति पर विचार करें। क्रोध की यह वृत्ति हम सब के जीवन में दिखायी देती है। शायद ही कोई ऐसा बिरला व्यक्ति हो, जिसके जीवन में इसका उदय न होता हो! ऐसा तो हो सकता है कि कुछ लोग अपनी इस वृ……続きを見る
आज हम कृपा के बारे में कुछ चर्चा करेंगे। आज, मुझसे परिचित एक गायक महोदय ने प्रश्न किया कि कृपा के संदर्भ में प्रारब्ध और पुरुषार्थ का क्या स्थान है? और क्या कृपा से प्रारब्ध को टाला जा सकता है? कहा ……続きを見る
हिन्दी साहित्य के शिखर रचनाकार श्रीलाल शुक्ल की कहानियों का यह संग्रह एक अप्रतिम लेखक के अपने सामाजिक यथार्थ पर अचूक पकड़ और उसे बयान करने की उसकी अद्भुत कला का साक्ष्य है। इसकी कहानियाँ हिन्दी कहान……続きを見る